भगवान हनुमान ने आजीवन विवाह नहीं किया था

भगवान हनुमान ने आजीवन विवाह नहीं किया था, लेकिन उनका एक बेटा था मकरध्‍वज. पुत्र मकरध्‍वज के जन्‍म के पीछे एक रोचक कथा है



नई दिल्‍ली: हनुमान जी (Hanuman Ji) ब्रह्मचारी थे, ये बात सभी जानते हैं लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि आजीवन अविवाहित (Unmarried) रहने के बाद भी उनका एक पुत्र पैदा हुआ था. श्रीराम के अनन्य भक्त, अनंत बलशाली, समुद्र को एक छलांग मे लांघ जाने वाले, सोने की लंका जलाने वाले बजरंगबली को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. हालांकि उनके पुत्र के जन्‍म (Birth Story) की कथा कम ही लोग जानते हैं. आइए जानते हैं हनुमान जी के पुत्र का जन्‍म कैसे हुआ था.

अहिरावण ने रखा था हनुमान का रूप 

जब रावण भगवान राम (Lord Ram) से युद्ध में हारने लगा तो उसने पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करने के लिए मजबूर किया. अहिरावण अत्यंत मायावी राक्षस राजा था, उसने हनुमान का रूप धारण करके श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण किया और उन्‍हें पाताल लोक ले गए. जब इस बात का पता चला तो भगवान राम के शिविर में हाहाकार मच गया और उनकी खोज होने लगी. बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे. पाताल लोक के सात द्वार थे और हर द्वार पर एक पहरेदार था. सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने परास्त कर दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली एक वानर पहरा दे रहा था. 

पाताल लोक में हनुमान जी को मिला अपना पुत्र 

दिखने में एकदम अपने जैसे वानर को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ. उन्‍होंने जब उस वानर से परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज (Makardhwaj) बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया. मकरध्वज के मुंह से पिता के रूप में अपना नाम सुनकर हनुमान अत्यंत क्रोधित हो गए और बोले कि यह असंभव है, क्योंकि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं. फिर मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका जला कर समुद्र में आग बुझाने को कूदे थे, तब उनके शरीर का तापमान बहुत ज्‍यादा था. जब वह सागर के ऊपर थे, तब उनके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकर ने पी लिया था, और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था को प्राप्त हो गई. उसने ही मकरध्‍वज को जन्‍म दिया था.

पूर्व जन्‍म में अप्‍सरा थी मकर 

वह मकर पूर्व जन्म में कोई अप्सरा थी, लेकिन श्राप के कारण मकर बन गई थी. बाद में उसी मकर को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया और मार दिया. बाद में वह अप्सरा भी श्राप से मुक्त हो गई. यह सुनकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया. हालांकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज ने हनुमान जी को अंदर नहीं जाने दिया. इससे हनुमान जी प्रसन्‍न भी हुए. बाद में दोनों के बीच जमकर युद्ध हुआ और अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया और फिर श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त कराया. बाद में भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को ही पताल का नया राजा घोषित किया.


हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा

जब पाताल लोक के असुरराज अहिरावण ने भाई रावण के कहने पर प्रभु राम और लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। वह प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेकर चला गया था। तब हनुमान जी प्रभु राम और लक्ष्मण को खोजते हुए पाताल लोक पहुंच गए। वहां उन्होंने अपने जैसे पहरेदार को देखकर अचंभित हो गए। हनुमान जी की तरह दिखाई देने वाले पहरे पर खड़े हुए मकरध्वज ने स्वयं को हनुमान का पुत्र बताया। हनुमान जी इस बात को मानने को तैयार नहीं हुए, तो मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई।

मकरध्वज ने हनुमान जी से बोला कि आप जब माता सीता की खोज में लंका पहुंचे। आपको मेघनाद द्वारा पकड़कर रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। वहां पर रावण ने आपकी पूंछ में आग लगवा दी थी, जिसके बाद आप अपनी जलती पूंछ की आग बुझाने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे। आग बुझाते हुए आपके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी, जिसे एक बड़ी मछली ने पी लिया था। उसी एक बूंद की वजह से वह मछली गर्भवती हो गई।

एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने खाने के लिए उस मछली को पकड़ लिया। लेकिन जब उसका पेट चीर रहे थे, तभी उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला, जो कि मैं था। सेवक बालक को अहिरावण के पास लेकर गए। अहिरावण ने मुझे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। वह मैं ही हूं, जो मकरध्वज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया। हनुमान जी ने मकरध्वज को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

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